गाँव की छोरी रानी की चलती बस में चुदाई

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पहली बार रानी के जिस्म को मैंने इतने करीब से देखा. और पहली बार हमारी साँसे टकराई. बेल्ट को खोलकर मैंने पतलून के तनाव को थोड़ा कम किया. घाघरे को जांघों तक उठाकर रानी मेरी गोद में बैठ गई. हम दोनों सफर के साथ चुदाई का मजा ले रहे थे. हम दोनों एक दूसरे का भरपूर साथ दे रहे थे.

हम दोनों ने बस के खाली होने का पूरा फायदा उठाया. जौनसी सीट चाही उसपर अपना कब्जा जमाया. मेरी दशा खिलौने के दुकान में बच्चे जैसी हो गई. किस हाथ से क्या बटोरू, किस खिलौने को अपना बनाऊ समझ ही नहीं आ रहा था. बस मैं मनमानी करता गया और अपनी इच्छा पूरी करता रहा. वक़्त मानों ठहर सा गया था और मैंने अनगिनत बार अपनी जवानी का सैलाब रानी के चूत में छोड़ दिया.